बेलसंड का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान, सेनानियों ने थाने पर फहराया था तिरंगा

बेलसंड का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान, सेनानियों ने थाने पर फहराया था तिरंगा

0
बेलसंड का नाम भारत के स्वतंत्रता संग्राम में विशेष स्थान रखता है। 15 अगस्त 1942 को स्वतंत्रता सेनानियों ने थाना भवन पर तिरंगा फहराकर अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती दी थी। इस घटना की पृष्ठभूमि 11 अगस्त 1942 को पटना में बनी। पटना सचिवालय पर तिरंगा फहराने जा रहे छात्रों पर ब्रिटिश सैनिकों की गोलीबारी में सात छात्र शहीद हो गए। इस घटना ने पूरे बिहार में आंदोलन को तेज कर दिया।

बेलसंड में 12 अगस्त तक आंदोलन चरम पर पहुंच गया। आंदोलनकारियों ने सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया। सड़कों को क्षतिग्रस्त किया और पेड़ काटकर यातायात रोक दिया। टेलीफोन के तार काटने से संचार व्यवस्था ठप हो गई। बेलसंड के कई गांवों में 13-14 अगस्त को गुप्त बैठकें हुईं। इनमें 15 अगस्त को थाना भवन पर तिरंगा फहराने का निर्णय लिया गया। स्वतंत्रता सेनानी हरिहर प्रसाद सिंह, बृजनंदन सिंह, ब्रह्मदेव नारायण लाल, प्रदीप नारायण सिंह, मोसाफिर सिंह, रामदेव सिंह उर्फ 'नेताजी', बबुनंदन सिंह, नंदलाल जालान, जमुना सिंह, रामदेव सिंह आदि के नेतृत्व में अलग-अलग क्षेत्रों से हजारों की भीड़ जुलूस के रूप में थाने पहुंचे और स्वतंत्रता सेनानियों ने थाने पर कब्जा कर तिरंगा फहराया।
आक्रोशित भीड़ को देखकर सीमित संख्या में उपस्थित पुलिसकर्मी मूकदर्शक बने रहने में ही अपनी भलाई समझी। अथरी गांव के बृजनंदन सिंह ने दारोगा नंदलाल सिंह की खूंटी में टंगी वर्दी को पहनकर उनकी कुर्सी पर कब्जा जमा लिया। नंदलाल सिंह को अपनी जान बचाकर भागने को मजबूर होना पड़ा। बृजनंदन सिंह वहीं से सेनानियों को निदेशित करने लगे। पूरे उत्साह और जोशीले नारों के बीच थाना भवन पर तिरंगा ध्वज फहराया गया। साथ ही पोस्ट ऑफिस व रजिस्ट्री ऑफिस पर भी तिरंगा फहराया गया। संचार व्यवस्था के छिन्न-भिन्न रहने व आवागमन अवरुद्ध हो जाने से बेलसंड दो दिनों तक ब्रिटिश हुकूमत से आजाद रहा। स्वतंत्रता सेनानियों ने बेलसंड नीलहा कोठी पर भी धावा बोला। कोठी के मैनेजर मि. एच. आर. डाबसन को जान बचाकर भागना पड़ा। दारोगा नंदलाल सिंह की कुर्सी हथियाने वाले बृजनंदन सिंह आजादी के बाद 'दारोगाजी' के उपनाम से लोकप्रिय हुए। 

सब इन्सपेक्टर बी. रामाधार सिंह द्वारा बेलसंड थाना में धारा-147, 342, 447, 448, 379 आई. पी. सी के अंतर्गत दर्ज किए गए एफ. आई. आर. में 69 लोगों को नामजद व सैकड़ों अज्ञात को आरोपित किया गया। इस ऐतिहासिक घटना के बाद ब्रिटिश सैनिकों, गोरखा पलटन के साथ-साथ घुड़सवार पुलिस ने बदले की कार्रवाई करते हुए कई गांवों में कोहराम मचाया। बड़ी संख्या में घरों में लूटपाट कर उन्हें क्षतिग्रस्त कर दिया गया। कुछ जगहों पर आगजनी की घटना भी हुई। ब्रिटिश सैनिकों ने आतंक का राज कायम कर दिया था। सैकड़ों लोग महिलाओ व बच्चों के साथ गांव छोड़कर भाग निकले और कई लोगों ने भागकर नेपाल में शरण ली। बावजूद इसके क्रांति की मशाल सतत प्रज्वलित होती रही। इसी का परिणाम था तरियानी छपरा गोलीकांड जिसमें कई लोग शहीद हो गए। इस आंदोलन में क्षेत्र के पुरुषों के साथ महिलाओं ने भी सक्रिय भूमिका निभाई। पुलिस के अत्याचार के बावजूद लोगों का जोश कम नहीं हुआ। यह घटना बेलसंड के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान का प्रमुख उदाहरण है। 
इतिहासकार डॉ० लोकेश शरण की कलम से.....

एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

Please Select Embedded Mode To show the Comment System.*

Advertisement